हमारी वाणी

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Monday, 18 June 2012

इत्मीनान

अजीब सी यह कहानी है ..
बस तेरी यह मेहरबानी है 
झिरी से झांकती ...
सिने की परतों में ताकती ..
आती है होले से जगाती है...
एक पुडिया ...
हाथों में थमा सूरज की किरण ..
बादलों में भाग जाती है ...
धरा खोलती है ...
एक नज़र डालती है ...
मंद मंद मुस्कराती है ...
सूरज को देख ...
होंठों में बुदबुदाती है .....
तुम पास हो तो इत्मीनान है ...
न हो तो जालिम ....
यह दिन एक इम्तिहान है ..

.......... विनय ....... 

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