हमारी वाणी

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Wednesday, 1 February 2012

jiwan

कोंपल सा निकल जब में बाहर आया 
रसीली सी खुशबू को अपने पास पाया 
धीरे धीरे कोंपल से खिला में बड़ा में 
रूप योवन पे इतरा के खूब तना में 
देख खुद को ताने रोज़ था में देता 
मुझसे है गुलशन वरना क्या बजूद तेरा

आंधी फिर एक दिन ऐसी उठी 
डाल से तोड़ उड़ा दूर ले गयी 
योवन का रस अब ढ्लने सा लगा 
रस शाख सो जो मिला था घटने सा लगा 
कब तक करता खुद से में पूरा 
अब तो साँस में फाँस अटकने सा लगा 

मै में फ़ंस गया था अब समझने लगा हु 
जीवन का अर्थ अब महसूस कर रहा हु 
अकेला सा पथ पे नहीं चला जाता 
शाख से बंधा था तो ही सरल था 
जीवन मै जीवन बहुत ही मगन था 
टूट के टूटना यही सत्य दर्शन है 

अब जा के समझा जब सब सुख गया 
शाख से बंधा था क्यों टूट गया 
अब न जुड़ पाउँगा होम हो जाऊंगा 
बीज बन के कही पड़ जाऊंगा 
बूंदे प्यार की पाने को तड़पता रहूँगा 

गर जो बरसा फिर से मुझपे सावन 
कोंपल सा फिर से निकल बाहर आऊंगा 
न इतरा के साक्ष्य दिखाऊंगा 
सत्य का पथ बस खिल के बताऊंगा ....

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