बेठे बेठे एक दिन यू ही ख्याल आया
की तुझसे मिल के दिल को करार क्यों आया
तू कोन है मेरी क्या लगती है
क्यों मेरे दिल में तू हर वक़्त है बजती
दर पे खुदा के सर जो नवाता हु
आँखों में तेरी तस्वीर क्यों है उभरती
बाते बे इन्तहा जो करी तुझसे
दूर जाती है तो पास क्यों है लगती
अब तो बता दे तू कोन है मेरी
क्यों तेरी ही प्यास रोज़ है जगती
पहरों पहर बिताये जो लम्हे साथ तेरे
रातों में आ के क्यों मुझको झिंझोरे
रिश्ता तो समझा दे तू मेरे से अपना
आँखों में आंसू क्यों भरते है मेरे
मिलने को दिल क्यों मचले है मेरा
न जाने यह मंजर क्या है मेरा
समंदर सा बंधन क्यों है यह तेरा
क्यों गिरता हु बह के में तुझमे
समां जाने के बाद भी तुझमे
फिर प्यास क्यों रहती है मुझमे
लगता है अब तो में यु ही रहूँगा
पल पल तेरे साथ ही जिऊंगा
सांसों ने भी अब तो माना न कहना
तेरे साथ ही इन्होने है बहना
अवरिल सी बहती धरा सी हो तुम
शीतल सी टंडी आगोश हो तुम
में जलता फिर भी अंगारा ही ठहरा
विनय.......
१९/१०/२०११ .
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