हमारी वाणी

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Friday, 9 December 2011

तन्हाईयाँ ....


तन्हाइयों में बैठ आज पाया मेने 
तन्हा दिल देखो मिला है जा के कहाँ !!

चिराग बुझ गये सारे  बुझ गये तारे 
तन्हा फिर भी धुआ थरथराता है यहाँ !!

कहते है जालिम इसी को जिंदगी शायद 
तन्हा है जान यहाँ तनहा है जिस्म वहां !!

सोचा की पा लिया आज हमसफ़र मेने 
तन्हा फिर भी चलते वो वहां में यहाँ !!

दूर परे जलती बुझती टिमटिमाती रौशनी देखी
तन्हा खड़ा जेसे सिमटा सिमटा सा एक मकान  !!

लब पे आती थी लाख बाते देख तुझको 
तनहा होंठ रहे मेरे मयखाने में बैठे तेरे वहां !! 

एसे ही डूब के देखेंगे तनहाइयों में सदियों तक 
तनहा ही छोड़ जायेंगे सारा ये जहाँ .... ................................


विनय ...०८/११/२०११ 

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