हमारी वाणी

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Sunday 8 July 2012

तुम हो ?... तुम हो !

यथार्थ के धरातल पे ..
मूक मोन एक प्रश्न ...
तुम हो ... ?

विस्मृत सा अवाक् ..
देखता ..पूछता ..
अन्तर्द्वन्द जूझता ...

धकेलता दूर ..
चीरता अंधकार ..
भेदता द्रिष्टिप्ल्ट ...

गहराई गूँज में
टटोलता सत्य ..
पा बैठा अवचेतन में ...

अनभिग्य था ...
सार समस्त व्याप्त
भीतर वही ....

प्रफुटित कोंपल ..
सुगंध कस्तूरी ...
तुम्हारे होने का रहस्य खोलती ...

यथार्थ को धरातल ..
पे समक्ष ..
एक दम प्रत्यक्ष ....

आनंदित ..हाँ ....
प्रतिबिम्ब ......
मुखरित हो ... तुम हो !!!........

.... विनय ...

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