हमारी वाणी

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Monday 21 May 2012

यादों का पुलिंदा ....


कितने ही पुलिंदे  बांधे यादों के ...
यु ही साथ साथ चलते है ..
चलचित्रों की भांति ..
नयनों में विचरते है ....
झप से वोह आया ..
टप से उसने आ जगाया ...
चित्र अवसादों के ...
सुनहले ख्वाबों के ...
हर आहट एक नया राज़...
फिर से वही नुक्कड़ पे ...
शोरोगुल भीषण नाद ....
पोटली खुली की ...
चद्दर तन जाती है ...
रहस्यमई सी आवाजे गूंज जाती है ....
हाथों में फिर रेत मचलती है ....
उसकी तेरी मेरी वहां यहाँ ...
जाने कैसे कहाँ ...
अनकही बातों का समंदर ..
उफ्फंता यहाँ यही भीतर ...
डूबा डूबा सा साहिल खड़ा वहां ...
देखता है यहाँ भी वहां ...
पखड़डी पे चलते निशान ...
फिर वही ले जाते ....
जहाँ बिता था एक एक लम्हा ..
खंडरों की दीवारों पे..
जहाँ गुदा तेरा मेरा नाम ...
आज भी तैरती  हंसी वहां ....
उठती है माँ की आवाजे ...
मीठी मीठी गलियों के साथ ...
अंचल की ठंडी छावं ...
दुलार भरी पुचकार वहां ...
रेल की तीखी सिटी की पुकार ....
उसकी आँखों में तैरता बहता ..
वोह प्यार ...
फिर कब मिलना होगा ...
उठता सवाल......
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के मध्य ...
कहाँ खो गया ...
डिब्बियों में आज किस कदर ..
कैद हो गया ....
सांसों का भी रखना पड़ता ..
गिन के हिसाब ...
रातों में नीद को पुकारता ..
चीखता कुरेदता ...
भटकता ...
वही खिड़की पे जा अकड़ता ....
जब जब वोह आया ...
वहां से बहता ..
एक ठंडा सा झोंका ..
हवा का ....
फिर बांध लाया ..
यादों का पुलिंदा ....
थक हार के ...
ले आगोश में ...
माँ ने वही झट ले गोद में ...
मुझे लोरी गा सुलाया ....
एक पुलिंदा हवा के साथ ...
फिर मेरी खिड़की पे ....
बह के आया ................ 



विनय ......
 21/5/201

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