हमारी वाणी

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Saturday 14 January 2012

बेफिक्र जिंदगी......

रिश्तों की अजब सी भीड़ देखी
बिखरी बिखरी सी बेफिक्र जिंदगी देखी 
छोटे छोटे टुकड़ों में तलाशती 
प्यार के दाने चुनती देखी 

माल के किसी कोने में सुकडी सी
गले में बाहों को डाले
लिफ्ट में फुसफुसाते सी देखी

प्यास दो पलों की
आँखों ही आँखों में पिघलती देखी
तेज़ रफ़्तार है बड़ी तेज़ धार है
उस धार पे उफ्फंती वोह मझधार देखी

पुलिंदे बांधे सिने में लगे
बसों की कतार में उमीदों में खड़ी
बड़ी बेबाक बेफिक्र वोह आस देखी

दोड़ती है मेट्रो की लाइनों पे
रोज़ सुबह शाम देर रात
सुलगती दहकती यार की हर शाम देखी

पार्क के किसी कोने में दुबकी
कार में सिट पे मुह ढके
सिमटी सी प्यारी सी
होंठों पे खिलती नन्ही मुस्कान देखी

शुक्र है अभी जिन्दा है
जिंदगी में डूबी जिंदगी की
रोज़ होती मुहब्बते आम देखी

न कभी बुझेगी न थमेगी
जो कल भी थी जो आज भी है
सांसों में जलती हीर की रांझे
रांझे की हीर ..
पे होती कुर्बान मेने जान देखी .................. 

जिंदगी के पन्ने......

जिंदगी के पन्ने आज फिर उलट डाले 
फिर आज बड़े तीखे उसमे मसाले डाले 
खट्टे मीठे सारे सपने उधेड़ डाले ........

रुकी हवाओं को आज फिर उड़ाना है 
पंख लगा साथ उनके लौट जाना है 
बचपन तुझे फिर आज गले लगाना है ......

तन सा गया था ठुठ बन सा गया था
उसपे झरना प्यार का फिर से बहाना है
चंचल शोख बेफिक्र दिल को जगाना है ....

पकड़ हाथ आज फिर... ले देख
जिंदगी तुझे जिंदगी से आज फिर मिलाना है ...

मुस्कान से जीवन को सवारो...

चलो अब घर चलें , दिन भी चला गया ...............
नए नए रंग सारे बदल गया ...

धरा की गोद में सुबह चुप चाप आया 
नीले अम्बर में था उसने प्रकाश बिछाया 
सन्देश उसने बस यही सुनाया 
न नापो न तोलो बस सब के साथ एक सा हो लो
में भी तो सब पे धुप दे जाता हु
फरक नहीं दिखलाता हु
अँधेरे दूर भगा के उजालों का संगीत सुनाता हु

तुम भी करो दूर सब कालिमा
द्वेष दंश छलकपट की मत करो प्रपंच्मा
सौहार्ध्य से सब को गले लगा लो
मुस्कान से जीवन को सवारो.......... 

सफ़र

गुजरते ही नहीं यह लम्हे ..
इधर में हु की बहता जा रहा हूँ 
रेत हु की पानी हु
वक़्त की बंद मुठिओं में
कैसे फिसलता जा रहा हूँ ...
कैसे समझोंगे नहीं जानता
पल पल बदलता ही जा रहा हूँ ....

न सोचा था न समझा था ..
ठहर सा में गया जो था 
लगा की पा लिया उसको
वोह लम्हा ऐसा ही कुछ था
कब वोह गुज़र गया
पता भी न चला मुझको
खुद को बहता हुआ पाया
वोह दोजख वक़्त ही तो था

क्या कहता नहीं समझा
बड़ा ही अजीब सा मंजर हूँ
लुट के खुदी से खुद देखा
सौदैए जिंदगी से सस्ता हूँ
बस बहना ही सफ़र है अब तो
लहरें तुफानो का बाशिंदा हूँ .......................