हमारी वाणी

www.hamarivani.com

Wednesday 23 May 2012

चित्र भिन्न भिन्न प्रकार के .........


चित्र भिन्न भिन्न प्रकार के 
रंगो का मिश्रण मात्र नहीं ...
सोच के विभिन आयाम ..
रूप लेते है ..
बनते है बिगडते है ..
रेखा चित्र तब ..
एक रूप ले के ..
पृष्ठ पर उभरते है ...
कुछ आड़ी तिरछी आकृतियाँ  ..
जीवन के पड़ाव ..
पड़ाव के भिन्न भिन्न...
स्वरूप उनके रंग ..
पीड़ा के ,,,
आंनंद के ..
उद्वेग के ...
निस्वार्थ के ...
लगाव के ...
मूक ....
फिर भी चंचल ...
शांत ..
स्थिर ...
गूँज बन के ..
फ़ैल जाते है पृष्ठ पे ....
आइने की भांति ...
अक्स खिंच देते है ...
अनकहे सभी सवालों को ...
बिन कहे ही हल देते है ....
चित्र भिन्न भिन्न प्रकार के ...
निरंतर यह चक्र ..
समय सा चलता है ..
बिना विश्राम लिए ...
धुरी से बंधा घूमता ...
स्याह सफ़ेद होता ..
चित्र भिन्न भिन्न प्रकार के .....

विनय .. २३/५/२०१२ ......... 

Monday 21 May 2012

यादों का पुलिंदा ....


कितने ही पुलिंदे  बांधे यादों के ...
यु ही साथ साथ चलते है ..
चलचित्रों की भांति ..
नयनों में विचरते है ....
झप से वोह आया ..
टप से उसने आ जगाया ...
चित्र अवसादों के ...
सुनहले ख्वाबों के ...
हर आहट एक नया राज़...
फिर से वही नुक्कड़ पे ...
शोरोगुल भीषण नाद ....
पोटली खुली की ...
चद्दर तन जाती है ...
रहस्यमई सी आवाजे गूंज जाती है ....
हाथों में फिर रेत मचलती है ....
उसकी तेरी मेरी वहां यहाँ ...
जाने कैसे कहाँ ...
अनकही बातों का समंदर ..
उफ्फंता यहाँ यही भीतर ...
डूबा डूबा सा साहिल खड़ा वहां ...
देखता है यहाँ भी वहां ...
पखड़डी पे चलते निशान ...
फिर वही ले जाते ....
जहाँ बिता था एक एक लम्हा ..
खंडरों की दीवारों पे..
जहाँ गुदा तेरा मेरा नाम ...
आज भी तैरती  हंसी वहां ....
उठती है माँ की आवाजे ...
मीठी मीठी गलियों के साथ ...
अंचल की ठंडी छावं ...
दुलार भरी पुचकार वहां ...
रेल की तीखी सिटी की पुकार ....
उसकी आँखों में तैरता बहता ..
वोह प्यार ...
फिर कब मिलना होगा ...
उठता सवाल......
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के मध्य ...
कहाँ खो गया ...
डिब्बियों में आज किस कदर ..
कैद हो गया ....
सांसों का भी रखना पड़ता ..
गिन के हिसाब ...
रातों में नीद को पुकारता ..
चीखता कुरेदता ...
भटकता ...
वही खिड़की पे जा अकड़ता ....
जब जब वोह आया ...
वहां से बहता ..
एक ठंडा सा झोंका ..
हवा का ....
फिर बांध लाया ..
यादों का पुलिंदा ....
थक हार के ...
ले आगोश में ...
माँ ने वही झट ले गोद में ...
मुझे लोरी गा सुलाया ....
एक पुलिंदा हवा के साथ ...
फिर मेरी खिड़की पे ....
बह के आया ................ 



विनय ......
 21/5/201

Wednesday 16 May 2012

मौन मूक एक प्रश्न ......



मौन मूक एक प्रश्न 
रहता है ..
बारम्बार जब भी ..
यह पूछा जाता है .......
पूछा मेने हवाओं से ..
रहती हो बहती हो कैसे ...
उत्तर था ..
धमनियों में जैसे ...
पर वहां यह मौन रहा ....
आगे बड़ पूछा ..
कण धरा से ..
उपजाती हो कैसे ..
बाग सुनहले सजाती हो कैसे ..
उत्तर था ....
सपने जैसे बुनते हो ..
नयी डगर चुनते हो ....
पर वहां यह मौन रहा ...
सहजता से बड़े होले से ...
पूछा अवरिल जल कैसे बहते हो ...
उत्तर था ...
नीर निर्मल बन बहना है ..
ख़ुशी गम मिल सहना है ...
पर वहां यह मौन रहा ...
जा पकड़ा अब सूरज का द्वार
पूछा क्यों आता अधेरों को चीर ...
उत्तर था ....
पनपता बिज भी गर्भ में
फूटता है चीर ...
लुटाने बिखेरने ............
पर वहां यह मौन रहा ...
मौन.का मौन से प्रश्न ............
मूक ................
अडिग ....
अचल ..........
आँखों में झाँका ....
तीर सा तीखा पैना ........
रूह को चीर गया ........
पर फिर भी मौन रहा ...
पर सब कुछ ..
स्पष्ट साफ़ समतल ..........
ला पटका धरातल ....
प्रेम का यह ...
अज़ब मौन ....
मौन में शांत ....
अविरल झंझ्वत तूफान .....
पर वहां यह मौन रहा ...
पर वहां यह मौन रहा ...
पर वहां यह मौन रहा ... .....................

विनय ...... ११/५/२०१२ 

Tuesday 1 May 2012








मै हूँ  .....

जिंदगी के कुछ पन्ने उधार है हम पे 
जब चाहे अपनी कलम से लिख देना ..मै हूँ  .....


रास्ते बहुत है बाकी अभी बतेरे मोड़ भी 
जब चाहे जिस मोड थाम लेना हाथ मेरा .. मै हूँ   .....


रकीबों रंजिशों से भरी है हर शे इस शेहेर की 
खड़ा हु आज भी वही बस मुड़ के देख लेना .. मै हूँ   ....


रेला भीड़ का है आज चारो और तेरे यहाँ 
जिस पल तनहा हो जाओ बस आवाज़ देना .. मै हूँ   ...


विनय ...४/४/१२ ....
चक्र निरंतर ....................


में दीवानी 
मेरी दुनिया अलग 
हर रंग हर हर्फ़ 
हर परचा अलग 

तू भी तो भिन्न है 
तेरे रंग भी अलग
ठोर जुद्दा रस्ते जुद्दा
मंजिलों का पता जुद्दा

फिर क्या जोड़े है
क्या खींचे आकर्षण कैसा
स्पर्श स्पंदन मीठा कैसा
बंधन क्यों बन बैठा ऐसा

पिपासा तृष्णा जिज्ञासा
बड़े नाम व्याप्त
चिर अन्नंत वोह यही रुका
रस घोल कंठ
मेने तुने चखा

चक्र शांत
अद्रश्य रूप य़ू चलता
क्षण भंगुर
श्याम माटी हुआ ..
तू में ना ..
बस हम होम हुआ ...

अंकुरण बीज
प्रफुलित हो
गर्भ से निकल
फिर चक्र निरंतर
में..
तू ..
हम ................

विनय ....१२/४/१२ ...