हमारी वाणी

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Wednesday 20 June 2012

खँडहर .


यु ही चलते चलते ..
खिड़की से बाहर देखा ...
मानो वोह दूर खड़ा खँडहर ..
तेज़ी से मेरे साथ दोड़े जा रहा हो .....

अक्सर जब भी में ..
यु ही बाहर देखता हु ..
तो उसको अपने साथ ही दोड़ता पाता हु ....
स्थित है अपनी जगह ...
खंडित फिर भी जीवंत ...

लगता है बहुत कुछ कह जाता है ..
फिजाओं में आइना दिखाता ..
मिलवाता सत्य से ..
परोक्ष में अवचेतन को भेदता .....
सार बतलाता .......

पल पल एहसास करवाता ...
खंडित होने का . ..
फिर भी बेहने  का ..
जिसने सेका है भिन्न भिन्न तापो को ...
अन्तराल में ...
आंधियों और तुफानो को ..
हंसी और गम के मुहानों को ..
फिर भी अडिग ..धरातल से बंधे ..
अविरल देखा है चलते .
मेरे साथ साथ ..
अन्नंत तक ..
अपना वर्चस्व ...
अपनी गरिमा ...
भूत का भविष्य से..
वतर्मान में सामना ....
कराते...
हाँ वोह दोड़ता है पल पल
जब जब में देखता हु ...
खिड़की से बाहर ....

कभी मुझे ऐसा लगता है
मानों तुम ही यात्रारत हो
और में एक  स्थान पर अडिग खड़ा ..
कर्म में निरत हो
तुमको निहारता ...
जीवन का दिया तुम्हारा पाठ ...
निरंतर बदलाव का, बांचता ....
हाँ .....
तुम ....
खँडहर ......
मेरे भीतर हो ...
जब जब में झांकता ...
मन खिड़की से तुमको ................

......... विनय .............

Monday 18 June 2012

खँडहर


खँडहर

ख्वाबों का खँडहर ..
तलहटी से चिपका ...
बेबाक सा उजड़ा हुआ ...
पर्खचों में तब्दील ...
खूंटी से बंधा ....
वक़्त के थपेड़ों से ..
जुझ्झता अपने ख़त्म होने का ..
इंतज़ार करता हुआ ....
पड़ा ...........

जिस पल एक मौज ...
आ चूम लेती...
होले से आ ...
आँखों में झांक लेती ....
ले चलती सफ़र पुराने ....
रंगीन उस घर के मुहाने ....
जहाँ खिलती थी ...
खुशियाँ ....
जिंदगी जिंदगी से ...
मिलती थी ....
आंगन में फूलों की ...
महक यहाँ वहां ...
किवाड़ के पीछे ...
मेरी रूह के अंचल के पीछे ...
मोतियों सी खिलखिलाती ...
अटखेलियों शोरोगुल मचाती ....

देख उनको भूल जाता था
नयी रौशनी सा भरा रोज़ ..
किवाड़ खोल सुबह निकल जाता था ....
दोने भर ख्वाबों से ....
चंद ही सही...
मिश्री के दाने से ...
हंसी संतोष के बहाने से ..
होंठों को सजा लाता था .....

न जाने पुरवाई कहाँ ......
बही ...
अंधड़ सी बन सब ले उडी ...
तिनके बिखर गये ...
चेहरों के रंग ..
बदल गये ....
बोझ बन हम ...
खूंटी पे तन गये ...
जून रोटी भी अब तो ...
भारी लगे ...
नश्तर सी गले में गाली लगे ...

सींचा था गुलाब ..
बबूल हो गया ...
लहरों पे जो चलता था ..
आज खँडहर हो गया ....
दूर ...
बहूत दूर...
ख्वाबों का खँडहर ..
तलहटी से चिपका ...
बेबाक सा उजड़ा हुआ ...
पर्खचों में तब्दील ...
खूंटी से बंधा ....
वक़्त के थपेड़ों से ..
जुझ्झता अपने ख़त्म होने का ..
इंतज़ार करता हुआ ....
पड़ा ...........


.... विनय ....

दिल में कुछ चुभे ऐसी कोई हरकत करो,
गोया कोई मुझे ढूँढने में मेरी मदद करो .....

इत्मीनान

अजीब सी यह कहानी है ..
बस तेरी यह मेहरबानी है 
झिरी से झांकती ...
सिने की परतों में ताकती ..
आती है होले से जगाती है...
एक पुडिया ...
हाथों में थमा सूरज की किरण ..
बादलों में भाग जाती है ...
धरा खोलती है ...
एक नज़र डालती है ...
मंद मंद मुस्कराती है ...
सूरज को देख ...
होंठों में बुदबुदाती है .....
तुम पास हो तो इत्मीनान है ...
न हो तो जालिम ....
यह दिन एक इम्तिहान है ..

.......... विनय .......