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Wednesday 16 May 2012

मौन मूक एक प्रश्न ......



मौन मूक एक प्रश्न 
रहता है ..
बारम्बार जब भी ..
यह पूछा जाता है .......
पूछा मेने हवाओं से ..
रहती हो बहती हो कैसे ...
उत्तर था ..
धमनियों में जैसे ...
पर वहां यह मौन रहा ....
आगे बड़ पूछा ..
कण धरा से ..
उपजाती हो कैसे ..
बाग सुनहले सजाती हो कैसे ..
उत्तर था ....
सपने जैसे बुनते हो ..
नयी डगर चुनते हो ....
पर वहां यह मौन रहा ...
सहजता से बड़े होले से ...
पूछा अवरिल जल कैसे बहते हो ...
उत्तर था ...
नीर निर्मल बन बहना है ..
ख़ुशी गम मिल सहना है ...
पर वहां यह मौन रहा ...
जा पकड़ा अब सूरज का द्वार
पूछा क्यों आता अधेरों को चीर ...
उत्तर था ....
पनपता बिज भी गर्भ में
फूटता है चीर ...
लुटाने बिखेरने ............
पर वहां यह मौन रहा ...
मौन.का मौन से प्रश्न ............
मूक ................
अडिग ....
अचल ..........
आँखों में झाँका ....
तीर सा तीखा पैना ........
रूह को चीर गया ........
पर फिर भी मौन रहा ...
पर सब कुछ ..
स्पष्ट साफ़ समतल ..........
ला पटका धरातल ....
प्रेम का यह ...
अज़ब मौन ....
मौन में शांत ....
अविरल झंझ्वत तूफान .....
पर वहां यह मौन रहा ...
पर वहां यह मौन रहा ...
पर वहां यह मौन रहा ... .....................

विनय ...... ११/५/२०१२ 

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