जिंदगी के इस मोड़ पे खड़े हो के जब जब मेने पीछे देखा .. तो पाया की वक़्त के साथ बहते बहते कई पड़ाव पार किये .. कुछ खट्टे कुछ मिट्ठे लेकिन इस सब के बावजूद .......... रोज़ ही अपने मन में बदलते सवरूप एक नयी पहचान ... एक नया मुकाम दिखाते गये .... जो भी जब भी जैसा भी मिला संजोता गया भीतर .... और वोह सब यहाँ आप के सामने उडेलता गया ...................... यात्रा अंतर्मन की .. कहता गया .................
Saturday 3 August 2013
यात्रा अंतर्मन की ....: अलग ख्यालात .. मुख्तलिफ जज़्बात
यात्रा अंतर्मन की ....: अलग ख्यालात .. मुख्तलिफ जज़्बात: ख्यालातों का पुलिंदा कब खुल जाता है और कैसे सामने आ के वक़्त की देहलीज़ पे खड़ा हो के दिल के बंद दरवाज़ों पे दस्तक दे के होल से जगा जाता ...
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