हमारी वाणी

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Friday 9 December 2011

मुट्ठी भर धूप....


एक टुकड़ा धूप का बंद कर लिया 
मुट्ठी  न खोलुंगी  छुपा लुंगी कही ..
बसते के किसी कोने  में डाल के 
घर ले जाउंगी 
रात को रजाई में खोलुंगी 
तन्हाई में बैठ घंटो उस से बाते 
सुबह को वो  पैदल जाना 
रस्ते में करोंदों को नमक के साथ खाना 
हँसना एसे ही बे बात पे चहक जाना 
देर तक चौराहे पे कबूतरों को देखना 
छप से आहट  करना और फिर भागना 
पहली घंटी पे भाग के बाहर आना 
चवन्नी पे यु कितना इतराना 
दस पैसा भी कल के लिए बचाना 
वोह सब में आज मुठी भर धूप से  ढूंड  लुंगी 
बचपन जो खो गया था 
कल से छीन लूंगी 
बड़ी याद आती है हर पल की  
काश मुट्ठी भर धूप सब लौटा दे 
सहेजा है हर पल 
मेरे आंगन में बिखरा दे 
दे जाओगी ना 
धूप तुम कल फिर आओगी ना ..... 


विनय .....७/११/२०११ 

भाव दिल का..............


भाव दिल का अब कैसे तुमको बतलाएं 
"सच  के दर्द"  दिल के  किसे दिखलाये 
पोध सच उम्मीद की तो लगा रखी है
अर्थ शूल सा उनका कैसे  तुमको दिखलाये 
निष्पक्ष दिशा में छोड़ने  की बात  तो बस बात है  
दिल में लगे गोतों को कैसे आज हम बिठ्लाएं
भाव इस दिल का विनय कैसे हम तुमको बतलाएं .............


विनय ...... 

जिद है......


  • जिद है हाँ जिद है 
  • फुर्सत कहाँ है 
  • क्या जरूरत है 
  • बस चंद लम्हे ही तो चुराने है 
  • बड़ी लम्बी रात है 
  • तोड़  लोगे गर जो पल 
  • पता भी न चलेगा 
  • कैसे जायंगे घुल 
  • पता भी न चलेगा 
  • रंग एक सा ही तो आयेगा 
  • स्याह होता जायेगा 
  • बैठ रुक जा 
  • जिद है हाँ जिद है .........


विनय ..५/११/२०११ 

वापिस आजाओ......


वापिस आ जाओ आवाज़ 
जवाब दे जाओ 
बुलाया फिर मैने
रोका उसको बड़ा के हाथ 
क्या पहुँच जाऊंगा 
के सब कुछ फिर से कह पाउँगा 
कुछ सोचा न था 
बस बुला लिया 
की वापिस फिर से जिंदगी में 
वही हलचल आ जाये 
पन्ने जिगर के फिर से पलट जाये
बिसरी बातों में फिर वोह 
रंगत लौट आये
बस एक बार 
सुन तो लो 
दिल के तार खिंच से गये थे 
सुर जिंदगी के हिल से गये थे 
तारों को फिर  से स्वर दे जाओ 
आवाज़ दी है सुन लो 
वापिस आ जाओ 
जवाब दे जाओ ....

तन्हाईयाँ ....


तन्हाइयों में बैठ आज पाया मेने 
तन्हा दिल देखो मिला है जा के कहाँ !!

चिराग बुझ गये सारे  बुझ गये तारे 
तन्हा फिर भी धुआ थरथराता है यहाँ !!

कहते है जालिम इसी को जिंदगी शायद 
तन्हा है जान यहाँ तनहा है जिस्म वहां !!

सोचा की पा लिया आज हमसफ़र मेने 
तन्हा फिर भी चलते वो वहां में यहाँ !!

दूर परे जलती बुझती टिमटिमाती रौशनी देखी
तन्हा खड़ा जेसे सिमटा सिमटा सा एक मकान  !!

लब पे आती थी लाख बाते देख तुझको 
तनहा होंठ रहे मेरे मयखाने में बैठे तेरे वहां !! 

एसे ही डूब के देखेंगे तनहाइयों में सदियों तक 
तनहा ही छोड़ जायेंगे सारा ये जहाँ .... ................................


विनय ...०८/११/२०११ 

..


दीवाने तेरी मुहब्बत के.. तेरी राहों से हम रोज़ गुज़रे 
मजार अपने कंधो पे रख.. गलिओं से तेरी गुज़रे !!

खंडर सजा के राहों में बैठे है संग दिल  तेरी  
की बहारे यार शायद.. एक दिन यही से गुज़रे !!

घुलते है टूटते है किनारे दिले नदिया के मेरे 
क्या पता कब... मेरा यार इस पार गुज़रे !!

देखा हमने भी तुमने भी,  रोज़ गर्दिश में आसमान सारा
में तो जान हार गुज़रा .. तुम .. दिल ही हार गुज़रे !! 

बचपन खो गया है.....


परतों को खलोगे तो सब वही पाओगे 
जो समेटा था तिनका तिनका 
छोटे छोटे  वोह सब सपने 
जो कभी बुने थे बैठ साथ अपने 
पतली पख-डंडियों  पे यु ही उछलते 
पकड़ा था जुगनुओं को मुठियों में भींचे 
लिए थे जो सपने.. बिना आंख मींचे
झील पे वोह पथरों को उछालना 
उनका  छल्ले बनना फिर बिखरना 
घंटों यु ही रात.. तारों  को गिनना 
कल की ही तो लगती सी वोह बात है 
जिंदगी कैसी पहेली सी किताब है
गुड्डे गुड्डियों के लिए वोह लड़ना 
लड़ के भी ..साँझ फिर मिलने को तडपना 
कैसा वोह मंजर.. कैसी पहेली 
याद आती है..  हर वोह सहेली 
जाने कहाँ होंगे सब.. मेरे वोह अपने 
बुने जिनके संग, वोह मस्त मीठे से सपने 
आजा की बचपन, फिर लौट के आ 
मीठे वोह पल फिर आज.. झोली में भर जा 
की तरसु हर पल को में.. आज बैठी  अकेली 
काश हवा में होती.. वापिस जा बहती
लिप्पटती  जा आंगन से, बाँहों में भर लेती 
बचपन खो गया है , सब ढल सा गया है 
परतों में धुल सा वोह जम सा गया है ......

यु ही........


यु ही दूर गगन में 
एक बदल का टुकड़ा 
छोटा सा उड़ता 
मदमस्त यु ही 
छूने को मेने 
हाथ बड़ा दिए उस और ...
रुई के फोय सा नरम 
एहसास पोरों में 
आ बैठा..
उँगलियों में मेरे  
जैसे गेसुओं की घटाओं 
में उलझे उलझे 
भीनी भीनी खुशबू 
फैल गयी हो चाहू और 
चांदनी फिजाओं में 
लौट आयी सारी 
छोटी छोटी 
वोह महकती यादें 
फिर चिलमन से छुपती 
झप से 
आँखों की पलकों में मेरे 
वोह तेरा रुखसार पे 
नागिन सी काली
लट का लहरना  
हलके से गर्दन का 
बेबाक झटकना 
खिलखिला के 
हर बात पे चेह्कना 
घंटो बैठ तेरे सपनों 
का बुनना 
तभी अचानक 
यह क्या हो गया 
वक़्त इतना बेरहम 
क्यों हुआ 
अंधी का यह सेलाब
क्यों ले उड़ा
उस टुकड़े को बादल के 
जो मेरा था 
जिंदगी के इस दोराहे पे 
मेने सब्र का घूंट 
पी तो लिया था 
हकीकत से सम्झोता 
कर तो लिया था 
होम के खुद को 
तुझे जाने तो दिया था 
फिर आज वोह पल 
याद किया अगर पल 
वोह मेने फिर जीया
तो क्या यु ही 
कोई गुनाह मेने किया ...


विनय .... २३/११/२०११  

यह दिल ..........


बड़ा ही मरदूद है यह दिल 
संभालता ही नहीं 
हर बात पे मचलता है 
कुछ सुनता ही नहीं 
बेज़ार हु हर हरकत से इसकी 
दवा है की कोई  मिलती ही नहीं 
लाख समझाया की ना उलझ 
फितरत है  की सुधरती ही नहीं 
ठोकरे खा के भी नहीं यह मुड़ता
माथा वही पे जा के है  घिसता
पता है के नहीं कुछ तेरा वहां 
फिर भी इसका सवेरा है वहां 
क्यों तार जुड़ते है उस खम्बे से 
जहाँ  का मिलता नहीं  निशान  
शायद यही मुहब्बत है जालिम 
मिट के भी नहीं मिटता यह वहां ....


विनय ... २६/११/२०११ ..

बिजलियां हैं आतिश सी...


बेजार ही बस यु ही घरघराती नहीं आसमानों में
जोर कुछ तो चोर  है इन बेहिसाब आतिशी हवाओं में


कितनी अजाब सी ख़ामोशी  है फिर इन घटाओं में 
इक आवाज़ फिर भी आ रही है इन फिजाओं  से 


कोई तो आ के बताये  की क्या जुदा है इस सब में 
मुहब्बत  और प्यार के इन कमबख्त सारे फ़सानों में


मौत  दबे  पावों धीरे से जब भी जाती मयखाने में  
होंश उड़ जाते है बेबाक  जिंदगी  के शराबखानों में


बैठ नुकड़ पे यार  इश्क  तामीर क्यों करता है
कौन कमबख्त गुज़रता है उन वीरान राहों से 


तनहा तनहा इन्ही तिनकों में देख गुज़र जाएँगी 
बिजलियां हैं आतिश सी दिल को आखिर जला ही जाएँगी .....

उधेड़बुन ...


उधेड़ता रहा सपनो के सारे धागे ..
की ख्वाब में ही तेरी जीस्त छुपी होगी 
ढूंड लूँगा किसी तार में तू कही तो छुपी होगी..
सब कुछ बिखार दिया लो मेने आ देख जरा 
कमबख्त रात भी जाने कट गयी कहाँ ....


चैन सोचा था मिल ही जायेगा 
रुखसार से तेरे आज पर्दा हट ही जायेगा 
सीने में बसी आग बुझेगी आखिर
मेरे यार से दीदार हो ही जायेगा 

नहीं जनता था की हश्र होगा ऐसा 
उधेड़ता  हु खलिश में यु ही सपनो को 
बार बार उलझ के उनमे क्या पता था आखिर  
खुद ही उधड़ के बिखार जाऊंगा  ....

किसकी आस है ..


पता नहीं आज मन क्यों उदास है 
जीवन में किसकी प्यास है 
भुझ्ती नहीं धड़कन  इस दिल की 
न जाने कमबख्त किसकी आस है ......


सोच के बैठे थे की रस्ते तमाम हुए 
पता नहीं आहट जो सुनी फिर आज 
खुल गये जाने कितने ही राज़ 
नयी मंजिलों का फिर हो गया आगाज़ 


रस्ते है की थमते ही नहीं 
मोड़ है की रुकते ही नहीं 
साँस से बंधी  एक नहीं साँस है
सुर्ख रोशन यह कैसी आग है 


जलजला सा बनता जा रहा है 
समंदर भवर सा उठता जा रहा है 
होंसलों को  ले फिर थाम लिया  
हाथों में जो गर तेरा यह हाथ है 


विनय .. १/१२/२०११ 

यादों की तस्वीरे ....


कैद है कुछ यादों की तस्वीरे  
जो सुलगती है .. पिघलती नहीं ..
नश्तर से चुभ जाये दिल में 
फाहों से जा लगती  वही 
अक्स में तैरे वहां 
पर सामने घुलती  नहीं ...
ढल जाये मोम से 
पर फिर भी पिघलती नहीं ...
सुर्ख तपते फर्श पर 
जहाँ पावँ भी न रख पाओगे 
रखते ही तले पैर के 
क्यों वहां जमते नहीं ...
सर्द शीत तेरी याद 
बर्फ सी बन जाती क्यों 
कितना भी कुरेदू फिर वहां 
यादे क्यों पिघलती नहीं .... 
कैद है कुछ यादों की तस्वीरे 
जो सुलगती है ..पिघलती नहीं .......

विनय ...१२/११/२०११

इबादत ......


बेठे बेठे एक दिन यू ही ख्याल आया 
की तुझसे मिल के दिल को करार क्यों आया 
तू कोन है मेरी क्या लगती है 
क्यों मेरे दिल में तू हर वक़्त है बजती
दर पे खुदा के सर जो नवाता हु 
आँखों में तेरी तस्वीर क्यों है उभरती 
बाते बे इन्तहा जो करी तुझसे 
दूर जाती है तो पास क्यों है लगती 
अब तो बता दे तू कोन है मेरी 
क्यों तेरी ही प्यास रोज़ है जगती 
पहरों पहर बिताये जो लम्हे साथ तेरे 
रातों में आ के क्यों मुझको झिंझोरे 
रिश्ता तो समझा दे तू मेरे से अपना 
आँखों में आंसू क्यों भरते है मेरे 
मिलने को दिल क्यों मचले है मेरा 
न जाने यह मंजर क्या है मेरा 
समंदर सा बंधन क्यों है यह तेरा 
क्यों गिरता हु बह के में तुझमे 
समां जाने के बाद भी तुझमे 
फिर प्यास क्यों रहती है मुझमे 
लगता है अब तो में यु ही रहूँगा 
पल पल तेरे साथ ही जिऊंगा 
सांसों ने भी अब तो माना न कहना 
तेरे साथ ही इन्होने है बहना 
अवरिल सी बहती धरा सी हो तुम 
शीतल सी टंडी आगोश हो तुम 
में जलता फिर भी अंगारा ही ठहरा 

विनय.......
१९/१०/२०११ .