हमारी वाणी

www.hamarivani.com

Friday 9 December 2011

बचपन खो गया है.....


परतों को खलोगे तो सब वही पाओगे 
जो समेटा था तिनका तिनका 
छोटे छोटे  वोह सब सपने 
जो कभी बुने थे बैठ साथ अपने 
पतली पख-डंडियों  पे यु ही उछलते 
पकड़ा था जुगनुओं को मुठियों में भींचे 
लिए थे जो सपने.. बिना आंख मींचे
झील पे वोह पथरों को उछालना 
उनका  छल्ले बनना फिर बिखरना 
घंटों यु ही रात.. तारों  को गिनना 
कल की ही तो लगती सी वोह बात है 
जिंदगी कैसी पहेली सी किताब है
गुड्डे गुड्डियों के लिए वोह लड़ना 
लड़ के भी ..साँझ फिर मिलने को तडपना 
कैसा वोह मंजर.. कैसी पहेली 
याद आती है..  हर वोह सहेली 
जाने कहाँ होंगे सब.. मेरे वोह अपने 
बुने जिनके संग, वोह मस्त मीठे से सपने 
आजा की बचपन, फिर लौट के आ 
मीठे वोह पल फिर आज.. झोली में भर जा 
की तरसु हर पल को में.. आज बैठी  अकेली 
काश हवा में होती.. वापिस जा बहती
लिप्पटती  जा आंगन से, बाँहों में भर लेती 
बचपन खो गया है , सब ढल सा गया है 
परतों में धुल सा वोह जम सा गया है ......

No comments:

Post a Comment