हमारी वाणी

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Friday 9 December 2011

किसकी आस है ..


पता नहीं आज मन क्यों उदास है 
जीवन में किसकी प्यास है 
भुझ्ती नहीं धड़कन  इस दिल की 
न जाने कमबख्त किसकी आस है ......


सोच के बैठे थे की रस्ते तमाम हुए 
पता नहीं आहट जो सुनी फिर आज 
खुल गये जाने कितने ही राज़ 
नयी मंजिलों का फिर हो गया आगाज़ 


रस्ते है की थमते ही नहीं 
मोड़ है की रुकते ही नहीं 
साँस से बंधी  एक नहीं साँस है
सुर्ख रोशन यह कैसी आग है 


जलजला सा बनता जा रहा है 
समंदर भवर सा उठता जा रहा है 
होंसलों को  ले फिर थाम लिया  
हाथों में जो गर तेरा यह हाथ है 


विनय .. १/१२/२०११ 

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