हमारी वाणी

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Friday, 9 December 2011

यह दिल ..........


बड़ा ही मरदूद है यह दिल 
संभालता ही नहीं 
हर बात पे मचलता है 
कुछ सुनता ही नहीं 
बेज़ार हु हर हरकत से इसकी 
दवा है की कोई  मिलती ही नहीं 
लाख समझाया की ना उलझ 
फितरत है  की सुधरती ही नहीं 
ठोकरे खा के भी नहीं यह मुड़ता
माथा वही पे जा के है  घिसता
पता है के नहीं कुछ तेरा वहां 
फिर भी इसका सवेरा है वहां 
क्यों तार जुड़ते है उस खम्बे से 
जहाँ  का मिलता नहीं  निशान  
शायद यही मुहब्बत है जालिम 
मिट के भी नहीं मिटता यह वहां ....


विनय ... २६/११/२०११ ..

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